गुरुवार, 27 जनवरी 2011

वृक्ष

देता था फल तुम्हें सदां ही,
और तुम्हारे सर पर छाया.
नमक हरामी क्यों तुमने की,
क्यों तुमने मुझको कटवाया.


          गर कटवाते रहे पेड़ सभी तुम,
          कहाँ बनायेंगे पक्षी अपना घर.
          कहाँ तुम्हारा झूला होगा,
          कहाँ सुनोगे तुम कोयल के स्वर.


करो प्रतिज्ञा पेड़ लगायें,
सभी एक अपने आँगन में.
सभी और होगी हरियाली,
खुशियाँ आयेंगी जीवन में.

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